यह सही है कि रियासतकाल के अंतिम चरण में रैगर समुदाय पर अत्यधिक अत्याचार हुए हैं। यहाँ तक रजवाड़ों द्वारा अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन,1944 को असफल करने की पूरी कोशिश की गयी थी, जबकि उनके द्वारा अन्य निम्नवर्ग कि जातियोंके महासम्म्लेनों शायद ही कोई दखलंदाजी की हो।
कुछ रैगर लोगों की मति इस सीमा तक गिर गई है कि वे यह गलत समझ बैठे हैं कि उनकी वर्तमान सामाजिक और आर्थिक प्रस्थिति शाश्वत है, जबकि रैगरों के पूर्वजों की सामाजिक दशा वैसी नहीं थी, जैसी 20 वीं सदी ईस्वी के 30-40 के दशक में हो गई थी, बल्कि उससे पहले उत्तरोतर अच्छी थी। यह अलग बात है कि एक विचारधारा विशेष की चकाचौंध में आज के कई रैगर नवयुवक इतने भ्रमित हो गए हैं कि वे उस बात को स्वीकार ही नहीं करते हैं, जो रैगर जाति के पूर्वजों को महामण्डित करती है, चाहे वो बात कितनी ही सही क्यों नहीं है।
रैगर जाति के पूर्वजों को महामण्डित करने वाले कुछ तथ्य-
(1)- ब्राह्मण, बनिया, कायस्थों, मुसलमानों द्वारा मारवाड़ रियासत की जनगणना रिपोर्ट,1891 तैयार की गयी थी, उसके पृष्ठ संख्या 542 पर क्षेत्र विशेष के रैगर समुदाय को इस प्रकार से महामण्डित किया गया है :-
“पूर्व परगने में रैगर जनेऊ पहनते हैं, जो कच्चे सूत के धागे की होती है। इष्टदेवी गंगा को मानते हैं। इनके पुरोहित छन्याता व गौड़ ब्राह्मण होते हैं। वे ही इनके संस्कार, पिण्ड आदि करवाते हैं तथा किसी समय दक्षिणा स्वरुप रैगर जाति के लोग सोने का टका देते थे। परन्तु अब इस निर्धन अवस्था में हल्दी में रंगकर टका(तत्समय का एक सिक्का) देते हैं(रैगर कौन और क्यों ? में इसको उद् धृत किया है)।”
उन दिशा भ्रमित रैगर नवतुवकों विचार करना चाहिए कि स. 1981 ईस्वी में ऊंच-नीच की भावनायें पराकाष्ठा पर थी। अतः यह नहीं माना जा सकता है कि उच्चवर्ग के जनगणना अधिकारियों ने उस समय के रैगरों को झूंठा ही महामण्डित कर दिया है, बल्कि वह रिपोर्ट सही है तथा वह इस बात का प्रमाण है कि सन् 1891 ईस्वी बाद ही रैगर लोग लोभ लालच में पड़कर वो सब काम करने लग गये थे, जिसके कारण रैगर समुदाय उच्चवर्ग से दूर होता गया और घृणा का पात्र बन गया।
(2)- देखा गया है कि आजकल आये दिन निम्न जातियों के दूल्हों को घोड़ी से नीचे उतार देने की घटनायें होती रहती है, परंतु 19 वीं सदी के दूसरे अर्द्ध में भैंसलाना के रैगरवंशी पेमाजी उज्जैनिया के पुत्र के विवाह में दूदू ठिकाने का पूरा लवाजमा(रथ, तांगे, हाथी, घोड़े आदि) गया था। उल्लेखनीय है कि भैंसलाना में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की शुरुआत पेमाजी की हवेली में हुई थी।
भाइयों! रैगरों के पूर्वजों की गौरवपूर्ण वास्तविकता को स्वीकार करने से, न तो आपकी वर्तमान आजीविका छिनेगी और न ही आपका आरक्षण खत्म होगा और न ही बाबा साहेब के प्रति कोई आदर कम होगा। एक समय बाबा साहेब ने भी अपने को सूर्यवंशज बताया था। जरा यह तो विचार करो कि उनके आराध्य भगवान बुद्ध भी रघुवंश कुल के हैं। विष्णुपुराण में उल्लेख है कि राजकुमार सिद्धार्थ अर्थात भगवान बुद्ध महाराजा कुश के वंशत थे।
आप बेधड़क अपनी सोच को उर्ध्वगामी दिशा में मोड़ दो, जैसे बैरवा, मेघवाल भाइयों ने मोड़ रखा है !!
——–(अगली POST में उदहारण संख्या —04, जिसमें यह बताया जायेगा कि कई रैगर भाई उस बात को आसानी से स्वीकार लेते हैं, जो रैगरों को निम्नजाति का बताती है, चाहे वो बात झूंठी ही क्यों नहीं है।)